भारत में पैरेलल सिनेमा ने छोड़ी है अनूठी छाप
लखनऊ : भारतीय सिनेमा का इतिहास सिर्फ मनोरंजन तक ही सीमित नहीं रहा है। इसमें हमेशा समाज और राजनीति को दर्शाने का प्रयास रहा है। पैरेलल सिनेमा इसी प्रयास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पैरेलल सिनेमा क्या है?
पैरेलल सिनेमा को ‘नया सिनेमा’, ‘कला सिनेमा’, ‘सार्थक सिनेमा’ और ‘यथार्थवादी सिनेमा’ जैसे कई नामों से जाना जाता है। यह बीसवीं शताब्दी के छठवें दशक में प्रारम्भ हुआ एक आंदोलन था जिसने हिंदी सिनेमा को नई दिशा दी। इसका आधार सामाजिक यथार्थोन्मुखी था।
पैरेलल सिनेमा का उदय
- 1950 का दशक: इस दशक में भारतीय सिनेमा में एक नई जागरूकता देखने को मिली। फिल्मकारों ने सिर्फ मनोरंजन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, समाज की समस्याओं, गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार आदि मुद्दों को उठाना शुरू किया।
- नई लहर: 1960 के दशक में भारतीय सिनेमा में एक नई लहर आई। इस लहर के फिल्मकारों ने प्रयोगात्मक फिल्म निर्माण किया और पारंपरिक फिल्म निर्माण के तरीकों को चुनौती दी।
- प्रभाव: इस आंदोलन पर इतालवी नवयथार्थवाद और फ्रांसीसी नई लहर का काफी प्रभाव रहा।
पैरेलल सिनेमा के प्रमुख फिल्मकार
- सत्यजीत रे: भारत के सबसे प्रसिद्ध फिल्मकारों में से एक। उनकी फिल्मों में बंगाल के ग्रामीण जीवन का यथार्थवादी चित्रण किया गया है।
- ऋत्विक घटक: उन्होंने बंगाली सिनेमा में एक नई दिशा स्थापित की। उनकी फिल्मों में मध्यवर्ग के संघर्ष और सामाजिक परिवर्तन को दर्शाया गया है।
- मृणाल सेन: उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं पर आधारित फिल्में बनाईं।
- गिरिजा शंकर: उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित फिल्में बनाईं।
पैरेलल सिनेमा के विषय
- सामाजिक असमानता: गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, जातिवाद आदि।
- ग्रामीण जीवन: किसानों की समस्याएं, भूमि सुधार, आदि।
- महिलाओं का उत्पीड़न: दहेज प्रथा, बाल विवाह, आदि।
- राजनीतिक संघर्ष: स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्रीयता, आदि।
पैरेलल सिनेमा का महत्व
- भारतीय सिनेमा की विविधता: पैरेलल सिनेमा ने भारतीय सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक कला के रूप में स्थापित किया।
- सामाजिक चेतना: पैरेलल सिनेमा ने लोगों को सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक किया और समाज में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विश्व सिनेमा में भारत की पहचान: पैरेलल सिनेमा ने भारत को विश्व सिनेमा के मानचित्र पर स्थापित किया।
आज का पैरेलल सिनेमा
आज भी कई फिल्मकार पैरेलल सिनेमा की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि, आजकल ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से पैरेलल सिनेमा को अधिक दर्शकों तक पहुंचने का मौका मिल रहा है।
पैरेलल सिनेमा भारतीय सिनेमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसने न केवल भारतीय सिनेमा को बल्कि समाज को भी प्रभावित किया है। यह हमें याद दिलाता है कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का माध्यम ही नहीं बल्कि एक शक्तिशाली माध्यम है जो समाज में बदलाव ला सकता है।