पेंशन प्लानिंग हर नागरिक के लिए जरूरी, आर्थिक स्वतंत्रता विकास की धुरी: निर्मला सीतारमण

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जैसे-जैसे भारत ‘विकसित भारत 2047’ के विज़न की ओर बढ़ रहा है, आर्थिक स्वतंत्रता और वित्तीय गरिमा हमारे विकास की मूलभूत धुरी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पेंशन योजना कोई विकल्प नहीं बल्कि हर नागरिक के लिए अनिवार्यता है, ताकि बुजुर्गावस्था सुरक्षित रह सके।

वह पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (PFRDA) के एक कार्यक्रम में बोल रही थीं। वित्त मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) ने भारत के पेंशन ढांचे को बदल दिया है। यह केवल सरकारी कर्मचारियों तक सीमित न रहकर अब सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध है और सबसे कम लागत वाली योजनाओं में से एक है, जिसने लगातार उम्मीद से बेहतर रिटर्न दिया है।

सीतारमण ने कहा, “NPS को जन-आंदोलन बनना चाहिए और सभी वर्गों के लोगों को जल्दी रिटायरमेंट प्लानिंग अपनानी चाहिए।” उन्होंने महिलाओं को ‘पेंशन सखी’ के रूप में प्रशिक्षित करने और उन्हें प्रोत्साहन देने की बात भी कही, जैसे एलआईसी की ‘बीमा सखी’।

वित्तीय सेवाओं के सचिव एम. नागराजु ने कहा कि बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में मजबूत पेंशन ढांचा बनाना बेहद जरूरी है। उन्होंने वित्तीय साक्षरता, संस्थागत सहयोग और भविष्य-उन्मुख पेंशन नेटवर्क पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि पेंशन उत्पादों में सामंजस्य और निवेश मानकों को बढ़ावा देने के लिए फोरम फॉर रेगुलेटरी कोऑर्डिनेशन एंड डेवलपमेंट ऑफ पेंशन प्रॉडक्ट्स की स्थापना की गई है।

भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. वी. अनंथा नागेश्वरन ने कहा कि भारत तेजी से वृद्ध हो रहा है और 2050 तक 60 वर्ष से ऊपर की आबादी दोगुनी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि पेंशन और बचत का मुख्य आधार आर्थिक वृद्धि है और सरकार इसके लिए कई पहल कर रही है।

पीएफआरडीए के चेयरपर्सन एस. रामन्न ने कहा, “राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली सिर्फ रिटायरमेंट योजना नहीं है, यह हर भारतीय नागरिक के लिए वित्तीय सुरक्षा का वादा है।” उन्होंने बताया कि 31 अगस्त तक NPS के 9 करोड़ से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं और 15.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की एसेट्स अंडर मैनेजमेंट है। पिछले 14 वर्षों में NPS ने 9% से अधिक की औसत वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दी है।

उन्होंने आगे कहा कि हमारा फोकस इस कवरेज को और बढ़ाने पर है। इसके लिए मल्टीपल स्कीम फ्रेमवर्क जैसे कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे अधिक समावेशी पहुंच, लचीलापन और व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार समाधान मिल सकें।