कैसे करें भिंडी की खेती, कम लागत में अधिक उपज पैदा हो

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लखनऊ: भिंडी जिसे लेडीफिंगर या ओकरा के नाम से भी जाना जाता है, भारत में एक प्रमुख सब्जी फसल है। यह सब्जी अपने पौष्टिक गुणों और स्वाद के कारण बेहद लोकप्रिय है। भिंडी में विटामिन ए, विटामिन सी, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के साथ ही इम्यूनिटी को भी बढ़ाने में सहायक होती है। इसके अलावा, भिंडी का इस्तेमाल कई प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है। भिंडी की खेती से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ होता है क्योंकि यह बाजार में अच्छी कीमत पर बिकती है।

भिंडी की खेती पूरे भारत में की जाती है, विशेषकर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और गुजरात में। इन राज्यों में भिंडी की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जहाँ इसे विशेषकर गर्मियों और वर्षा ऋतु के दौरान उगाया जाता है।

1. जलवायु और मिट्टी:

  • भिंडी की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी होती है।
  • 25°C से 35°C तापमान इसके विकास के लिए अनुकूल है।
  • यह ठंडे और पाले वाले मौसम को सहन नहीं कर सकती।
  • भिंडी लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उत्तम है।
  • मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

2. खेत की तैयारी:

  • खेत को 2-3 बार गहरी जुताई करके अच्छी तरह से तैयार करें।
  • मिट्टी को भुरभुरी और समतल करें।
  • खरपतवारों को हटा दें।
  • बुवाई से पहले लगभग 10-15 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिलाएं।

3. बुवाई का समय:

  • उत्तर भारत में भिंडी की बुवाई दो बार की जाती है:
    • ग्रीष्मकालीन फसल: फरवरी के अंत से मार्च तक
    • वर्षाकालीन फसल: जून-जुलाई में
  • दक्षिण भारत में इसे साल भर उगाया जा सकता है।

4. बीज और बुवाई की विधि:

  • प्रति हेक्टेयर लगभग 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए यह मात्रा कम हो सकती है।
  • बीजों को बुवाई से पहले 12-24 घंटे पानी में भिगो दें, जिससे अंकुरण अच्छा होता है।
  • पंक्तियों में बुवाई करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15-30 सेमी रखें।
  • बीजों को 2-3 सेमी गहराई पर बोएं।

5. सिंचाई:

  • बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें।
  • ग्रीष्मकालीन फसल में 4-5 दिनों के अंतराल पर और वर्षाकालीन फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
  • फूल और फल बनने के समय पर्याप्त नमी बनाए रखें।
  • खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए।

6. खाद एवं उर्वरक:

  • मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें।
  • सामान्य तौर पर, 80:60:40 किलोग्राम NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
  • नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय दें।
  • नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो बार में, बुवाई के 30 और 60 दिन बाद दें।

7. खरपतवार नियंत्रण:

  • बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें और 40-45 दिन बाद दूसरी।
  • खरपतवारनाशी का प्रयोग भी किया जा सकता है।

8. कीट एवं रोग नियंत्रण:

  • कीट: एफिड्स, जैसिड्स, फल छेदक आदि भिंडी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनके नियंत्रण के लिए उचित कीटनाशक का प्रयोग करें।
  • रोग: पीला शिरा मोज़ेक वायरस (Yellow Vein Mosaic Virus) भिंडी का एक प्रमुख रोग है। रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें और रोगग्रस्त पौधों को खेत से हटा दें। फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण के लिए फफूंदनाशक का प्रयोग करें।

9. कटाई:

  • बुवाई के 45-60 दिन बाद फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
  • जब फल कोमल और मुलायम हों तभी तोड़ें।
  • फलों को 2-3 दिनों के अंतराल पर नियमित रूप से तोड़ते रहें।

10. उपज:

  • उन्नत किस्मों और अच्छी प्रबंधन तकनीकों से प्रति हेक्टेयर 10-15 टन तक उपज प्राप्त की जा सकती है।