राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन में जुलाई 2025 तक 10 लाख से अधिक किसानों का किया गया नामांकन: केंद्र

14-5

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) पारंपरिक ज्ञान में निहित रासायनिक-मुक्त, इको-सिस्टम-आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये 25 नवंबर 2024 में शुरू की गई। यह एक स्टैंडअलोन केंद्र प्रायोजित योजना है। इसका उद्देश्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और इको-सिस्टम को बहाल करना और अधिक जलवायु लचीलापन प्राप्त करने के लिए किसान को इनपुट लागत को कम करना है।

मिशन का लक्ष्य 2,481 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ 15,000 समूहों के माध्यम से 7.5 लाख हेक्टेयर की खेती है। यह मिशन 1 करोड़ किसानों को सुविधा प्रदान करता है। इसके तहत 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्रों को लक्षित किया गया है। 70,000 से अधिक प्रशिक्षित कृषि सखियों को अंतिम-मील इनपुट वितरण और किसान मार्गदर्शन सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया गया है। जुलाई 2025 तक 10 लाख से अधिक किसानों का नामांकन किया गया है। मिशन के तहत 1,100 मॉडल फार्म विकसित किए गए हैं और इससे संबंधित 806 प्रशिक्षण संस्थान सक्रिय हैं।

एनएफ एक रसायन मुक्त खेती

प्राकृतिक खेती (एनएफ) एक रसायन मुक्त खेती है। इसमें पशुधन (अधिमानतः गाय की स्थानीय नस्ल), एकीकृत प्राकृतिक खेती के तरीके और भारतीय पारंपरिक ज्ञान में निहित विविध फसल प्रणालियां शामिल हैं। एनएफ मिट्टी, पानी, माइक्रोबायोम, पौधों, जानवरों, जलवायु और मानव आवश्यकताओं के बीच प्राकृतिक इको-सिस्टम की अन्योन्याश्रयता को पहचानता है।

प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों और पद्धतियों का उद्देश्य स्थान-विशिष्ट कृषि-पारिस्थितिक प्रथाओं को बढ़ावा देकर कृषि में जलवायु स्थिरता को बढ़ाना है जिससे रासायनिक इनपुटों पर निर्भरता कम होती है और प्राकृतिक इको-सिस्टम मजबूत होते हैं। यह बहु-फसल प्रणालियों, बायोमास मल्चिंग आदि के माध्यम से मृदा में कार्बनिक पदार्थों के उत्पादन को प्रोत्साहित करके मृदा स्वास्थ्य और नमी की मात्रा में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करता है। प्राकृतिक खेती लाभकारी कीटों, पक्षियों और सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को बढ़ावा देकर जैव विविधता को भी बढ़ाती है जो प्राकृतिक कीट नियंत्रण और परागण में सहायक होते हैं। मृदा स्वास्थ्य में सुधार के साथ, प्राकृतिक खेती की प्रथाएं कृषि लचीलापन बढ़ाती हैं, जिससे किसानों को चरम जलवायु घटनाओं से निपटने में मदद मिलती है।

एनएफ को देश के कई राज्य अपना चुके हैं

कई राज्य पहले से ही प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं और सफल मॉडल विकसित कर चुके हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और केरल अग्रणी राज्यों में से हैं।

एनएमएनएफ की विशेषताएं

आपको बता दें, इस योजना में 15,000 प्राकृतिक खेती समूहों के गठन की परिकल्पना की गई थी, जहां प्रत्येक क्लस्टर लगभग 50 हेक्टेयर का होगा। इसके तहत लगभग 125 किसानों के सन्निहित क्षेत्र का गठन किया जाएगा। इन समूहों की पहचान राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा की जाती है। नए किसान प्रत्येक फसल के मौसम की शुरुआत में प्राकृतिक खेती क्लस्टर में शामिल हो सकते हैं।

10,000 आवश्यकता-आधारित जैव-इनपुट संसाधन केंद्र इन समूहों के किसानों के लिए एनएफ इनपुट की आसान उपलब्धता के साथ समर्थन करेंगे। इस प्रकार बाहरी रूप से खरीदे गए रासायनिक इनपुट पर निर्भरता को कम करेंगे। प्राकृतिक इनपुटों का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को काफी बढ़ाता है और समग्र पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देता है। बीआरसी की स्थापना परम्परागत खेती करने वाले किसानों, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों/कृषक उत्पादक संगठनों, स्व-सहायता समूहों, स्थानीय ग्रामीण उद्यमियों आदि द्वारा की जा सकती है।

इसके अलावा, स्कीम में एनएफ पद्धतियों पर किसानों का मार्गदर्शन करने तथा स्व-सहायता समूहों, आंगनवाड़ी, ग्राम सभा, कृषि विज्ञान केन्द्रों आदि को शामिल करके समुदाय व्यापी जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक एनएफ क्लस्टर में दो कृषि सखियों/सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों (सीआरपी) की तैनाती की परिकल्पना की गई है। वहीं, सभी हितधारकों के लिए प्राकृतिक खेती पर व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है।

एनएफ मॉडल प्रदर्शन फार्मों में कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), कृषि विश्वविद्यालयों, स्थानीय प्राकृतिक कृषि संस्थानों आदि द्वारा प्रशिक्षण के लिए प्रावधान हैं। ये प्रशिक्षण प्राकृतिक कृषि पद्धतियों जैसे एनएफ इनपुट जैसे बीजामृत आदि तैयार करने, भूमि की तैयारी, कीट और रोग प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन प्रथाओं आदि पर प्रदान किए जा रहे हैं।

एनएमएनएफ के कार्यान्वयन में प्रगति

गौरतलब हो, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किसान नामांकन, मॉडल प्रदर्शन फार्मों का विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसे कार्यकलाप शुरू हो गए हैं। योजना के दिशानिर्देश 26 दिसंबर 2024 को प्रसारित किए गए थे। मार्च 2025 तक 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की वार्षिक कार्य योजना (एएपी) को मंजूरी दी गई है। योजना के अनुमोदन के बाद से, वित्तीय वर्ष 2024-25 में, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी अनुमोदित वार्षिक कार्य योजनाओं (एएपी) के अनुसार 177.78 लाख रुपये जारी किए गए हैं। 28 मार्च, 2025 तक 70,021 कृषि सखियों को मृदा स्वास्थ्य और प्राकृतिक खेती के तरीकों में प्रशिक्षित किया जा चुका है।

इसके अलावा, 22 जुलाई, 2025 तक-

  • प्राकृतिक खेती पर 3900 से अधिक वैज्ञानिकों, किसान मास्टर ट्रेनर्स (एफएमटी) और सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है और मिशन के तहत लगभग 28,000 सीआरपी की पहचान की गई है।
  • राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा 806 प्रशिक्षण संस्थानों अर्थात् कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विश्वविद्यालयों और स्थानीय प्राकृतिक कृषि संस्थानों को शामिल किया गया है।
  • सीआरपी और किसानों के प्रशिक्षण के लिए 1,100 प्राकृतिक खेती मॉडल फार्म विकसित किए गए हैं।
  • इस स्कीम में किसानों के लिए प्राकृतिक खेती, प्रशिक्षण, पशुधन के पालन-पोषण, प्राकृतिक कृषि आदानों को तैयार करने आदि के लिए प्रति किसान प्रति वर्ष प्रति वर्ष 4000/- रुपये के उत्पादन आधारित प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है।
  • मिशन के तहत 10 लाख से अधिक किसानों को नामांकित किया गया है।
  • 7,934 बीआरसी की पहचान की गई है, जिनमें से 2,045 बीआरसी स्थापित किए गए हैं।

ऑनलाइन पोर्टल

इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक खेती प्रमाणन प्रणाली भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस)- भारत के तहत राष्ट्रीय जैविक और प्राकृतिक खेती केंद्र (एनसीओएफ), गाजियाबाद द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। एनएमएनएफ के कार्यान्वयन की प्रगति की वास्तविक समय की निगरानी के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल (https://naturalfarming.dac.gov.in/) विकसित किया गया है।

दरअसल, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन भारत के कृषि प्रतिमान में एक परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। मजबूत प्रशिक्षण नेटवर्क, पारदर्शी निगरानी और वित्तीय प्रोत्साहनों के साथ, मिशन भारतीय कृषि के लिए एक स्थायी भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

एक नज़र