सहजन की खेती के लिए अपनाएं ये विधि, कम लागत में मिलेगा ज्यादा मुनाफा
सहजन एवं मीठी नीम (करी पत्ता) के महत्व को उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत के लोगों को पहले से मालूम है, लेकिन अब इसका महत्व सभी को पता है. जब पौष्टिक सब्जियों की चर्चा होती है तो सबसे पहले जो नाम आता है, वह सहजन है. पृथ्वी पर पाए जाने वाले किसी भी पौधे में सहजन के बराबर औषधीय एवं पौष्टिक गुण नहीं पाए जाते है. सहजन बिहार में सालों भर उगाये जाने वाला बहुवर्षीय सब्जी है. सहजन के लिए किसी विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती हैं. सामान्यतः सहजन में फल सालभर में एक बार आता है, जिसके फल का उपयोग वे साल में एक बार जाड़े के दिनों में सब्जी के रूप में करते हैं. सहजन की कुछ प्रजातियों में फल साल में दो बार आता है. दक्षिण भारत में सहजन के फूल-फल-पत्ती का उपयोग अपने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में साल भर किया जाता है.
सहजन की खेती भारत ही नहीं बल्कि फिलीपींस, हवाई, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में होता है. सहजन के बीज से तेल भी निकाला जाता है. बीज को उबालकर सुखाने और फिर पाउडर बनाकर विदेशों में निर्यात भी किया जा रहा है. सहजन में औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में है और इसके पौधे के सभी भागों का उपयोग विभिन्न कार्यो में किया जाता है.
सहजन में पाए जाते हैं कई तरह के विटामिन
सहजन का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है. सामान्यतः यह एक बहुवर्षीय, कमजोर तना और छोटी-छोटी पत्तियों वाला लगभग दस मीटर से भी उंचा पौधा होता है. यह कम उपजाऊ जमीन में भी बिना सिंचाई के साल भर हरा-भरा और तेजी से बढ़ने वाला पौधा है. हाल के दिनों में सहजन का साल में दो बार फलने वाला वार्षिक प्रभेद तैयार किया गया है, जो न सिर्फ उत्पादन ज्यादा देता है बल्कि यह प्रोटीन, लवण, लोहा, विटामिन-बी और विटामिन-सी से भरपूर है. बिहार के किसानों और खासकर अपनी भू-भागीय पसंद के कारण सहजन दियारा क्षेत्र के किसानों के लिए उनकी फसल प्रणाली का एक आर्थिक महत्व का उपयुक्त फसल हो सकता है. सहजन सामान्यतया 25-30 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान पर सहजन के पौधा का हरा-भरा व काफी फैलने वाला विकास होता है. यह ठंढ को भी सहता है. परंतु पाला से पौधा को नुकसान होता है. फूल आते समय यदि तापक्रम 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने पर फूल झड़ने लगता है. कम या ज्यादा वर्षा से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है. यह विभिन्न पारिस्थितिक अवस्थाओं में उगने वाला पौधा है. इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टियों में सहजन की खेती की जा सकती है. यहाँ तक कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है, परन्तु व्यवसायिक खेती के लिए साल में दो बार फलने वाला सहजन के प्रभेदों के लिए 6-7.5 पी.एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर पाया गया है.
सहजन से जानवर के स्वास्थ्य और दूध में हो रही बढ़ोतरी
सहजन की वर्ष में दो बार फलने वाले प्रभेदों में पी.के.एम.1, पी.के.एम.2, कोयेंबटूर 1 तथा कोयंबटूर 2 प्रमुख हैं. इसका पौधा 4-6 मीटर उंचा होता है तथा 90-100 दिनों में इसमें फूल आता है. जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई करते रहते हैं. पौधे लगाने के लगभग 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है. साल में एक पौधा से 65-70 सें.मी. लम्बा तथा औसतन 6.3 सेंमी. मोटा, 200-400 फल (40-50 किलोग्राम) मिलता है. यह काफी गूदेदार होता है तथा पकने के बाद इसका 70 प्रतिशत भाग खाने योग्य होता है. एक बार लगाने के बाद से 4-5 वर्षों तक इससे फलन लिया जा सकता है. यहां यह बता देना आवश्यक है की आजकल सहजन की खेती दुधारू जानवरों को चारा के लिए किया जा रहा है, इससे जानवर का स्वास्थ्य एवं दूध भी बढ़ रहा है.
सहजन की खेती के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
प्रत्येक वर्ष फसल लेने के बाद पौधे को जमीन से एक मीटर छोड़कर काटना आवश्यक है. कटे हिस्से को भी लगाया जा सकता है. सहजन के पौधे की रोपाई गड्ढा बनाकर किया जाता है.
खेत को अच्छी तरह खरपतवार मुक्त करने के बाद 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 सेंमी. आकार का गड्ढा बनाते हैं. गड्ढे के उपरी मिट्टी के साथ 10 किलोग्राम सड़ा हुआ गोबर का खाद मिलाकर गड्ढे को भर देते हैं. इससे खेत पौध के रोपनी हेतु तैयार हो जाता है.
सहजन में बीज और शाखा के टुकड़ों दोनों प्रकार से ही प्रबर्द्धन होता है. अच्छी फलन और साल में दो बार फलन के लिए बीज से प्रबर्द्धन करना अच्छा है.
एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 500 से 700 ग्राम बीज पर्याप्त होता है. बीज को सीधे तैयार गड्ढों में या फिर पॉलीथीन बैग में तैयार कर गड्ढों में लगाया जा सकता है.
पॉलीथीन बैग में पौध एक महीना में लगाने योग्य तैयार हो जाता है.
एक महीने के तैयार पौध को पहले से तैयार किए गये गड्ढों में जून से लेकर सितम्बर तक रोपनी किया जा सकता है.
पौध जब लगभग 75 सेमी का हो जाये तो पौधे के ऊपरी भाग को तोड़ देना चाहिए , इससे बगल से शाखाओं को निकलने में आसानी होगी.
रोपनी के तीन महीने के बाद 100 ग्राम यूरिया + 75 ग्राम सुपर फास्फेट + 75 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा की दर से डालें.
इसके तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा का पुन: व्यवहार करें.
सहजन पर किए गए शोध से यह पाया गया कि मात्र 15 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति गड्ढा तथा एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 किलोग्राम/हेक्टेयर) के प्रयोग से जैविक सहजन की खेती, उपज में बिना किसी ह्रास के किया जा सकता है.
अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई करना लाभदायक है.
गड्ढों में बीज से अगर प्रबर्द्धन किया गया है तो बीज के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापना तक नमी का बना रहना आवश्यक है.
फूल लगने के समय खेत ज्यादा सूखा या ज्यादा गीला रहने पर दोनों ही अवस्था में फूल के झड़ने की समस्या होती है.
सहजन की फसल में लगने वाले कीट व रोग
सहजन पर सबसे ज्यादा आक्रमण बिहार हेयरी कैटर पीलर (पिल्लू) नामक कीट से है. इसे अगर नियंत्रित नहीं किया तो यह सम्पूर्ण पौधे की पत्तियों को खा जाता है तथा आसपास में भी फ़ैल जाता है. यह अन्य पौधों को भी आक्रांत कर सकता है. अंडा से निकलने के बाद अपने नवजात अवस्था में यह कीट समूह में एक स्थान पर रहता हैं बाद में भोजन की तलाश में यह सम्पूर्ण पौधों पर बिखर जाता है. इस कीट के नियंत्रण के लिए कीट के नवजात अवस्था में सर्फ को घोलकर अगर इसके ऊपर डाल दिया जाय तो सभी कीट मर जाते हैं. वयस्क अवस्था में जब यह सम्पूर्ण पौधों पर फ़ैल जाता है तो एकमात्र दवा डाइक्लोरोवास (नूभान) 0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करने से तत्काल लाभ मिलता है.
सहजन के दूसरे कीट में कभी-कभी फल पर फल मक्खी का आक्रमण होता है. इस कीट के नियंत्रण हेतु भी डाइक्लोरोवास (नूभान) 0.5 मिली. दवा एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने पर कीट का नियंत्रण होता है. साल में दो बार फल देनेवाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई सामान्यतया फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है. प्रत्येक पौधे से लगभग 200-400 (40-50 किलोग्राम) सहजन सालभर में प्राप्त हो जाता है. सहजन की तुड़ाई बाजार और मात्रा के अनुसार 1-2 माह तक चलता है. सहजन के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई करने से बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है.
सहजन बहुउपयोगी पौधा है. पौधे के सभी भागों का प्रयोग भोजन, दवा औद्योगिक कार्यो आदि में किया जाता है. सहजन में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व व विटामिन है. एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम तथा संतरा की तुलना में सात गुणा विटामिन सी. पाया जाता है.
सहजन का फूल, फल और पत्तियों का भोजन के रूप में प्रयोग होता है. सहजन का छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार किया जाता है, जो लगभग 300 से ज्यादा बीमारियों के इलाज में काम आता है. सहजन के पौधा से गूदा निकालकर कपड़ा और कागज उद्योग के काम में व्यवहार किया जाता है.आजकल सहजन से दवा बनाकर अनेक दवा कंपनी (पाउडर, कैप्सूल, तेल बीज आदि) विदेशों में निर्यात कर रहे हैं. दियारा क्षेत्र में सहजन के नये प्रभेदों की खेती को बढ़ावा देकर न सिर्फ स्थानीय बल्कि दूर-दराज के बाजारों में सब्जी के रूप में इसका सालों भर बिक्री कर आमदनी कमाया जा सकता है, इसके औषधीय व औद्योगिक गुणों को ध्यान रखते हुए किसानों के बीच में एक स्थाई दीर्घकालीन आमदनी स्रोत बनाया जा सकता है.सहजन बिना किसी विशेष देखभाल एवं शून्य लागत पर आमदनी देनी वाली फसल है. अनुपयोगी जमीन पर सहजन के कुछ पौधे लगाकर जहां उन्हें घर के खाने के लिए सब्जी उपलब्ध हो सकेंगी वहीं इसे बेचकर आर्थिक सम्पन्नता भी हासिल कर सकते हैं.