जन्मदिन पर याद किया प्रो कमला श्रीवास्तव को
लखनऊ| ज्योति कलश संस्कृति संस्थान, लखनऊ के तत्वावधान में परम श्रद्धेय प्रो० कमला श्रीवास्तव को कवयित्री सम्मेलन के माध्यम से याद किया गया। स्थानीय बाल संग्रहालय चारबाग के पुस्तकालय में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उनकी बहन श्रीमती विनीत सिन्हा जी उपस्थिति रहीं। अति विशिष्ट अतिथि डॉ0 पूर्णिमा पांडे उपस्थित रहे। दीप प्रज्वलन के पश्चात संस्था की अध्यक्ष डॉ० उषा सिन्हा एवं संरक्षक शिवा सिंह जी ने अतिथियों एवं कवयित्रियों को अंग वस्त्र (शॉल) ओढ़ाए ।विकास कल्चरल एवं वेलफेयर सोसाइटी के डॉ0 विकासएवं वेलफेयर सोसाइटी के डॉ0 विकास श्रीवास्तव ने अतिथियों एवं कवयित्रियों को प्रतीक चिन्ह भेंट किए। संस्था की अध्यक्ष डॉक्टर उषा सिन्हा ने स्वागत करते हुए प्रो कमला श्रीवास्तव जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। प्रो0 कमला श्रीवास्तव जी की बहन विनीत सिन्हा जी ने कमला जी के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोक गायिका के रूप में जानी जाती रही लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि उन्होंने मात्र सोलह वर्ष की आयु में वैन चलाना प्रारंभ किया था। अच्छी तैराक और घुड़सवारी भी उनको अच्छी तरह से आता था। तत्पश्चात जन्माष्टमी उपलक्ष्य पर अवधी रचना बधईया बाज रही आज होरिलवा होई। दूसरी भोजपुरी भाषा का किसान गीत भोर भई भिनसार चलो खेतवा की ओर ,गाकर सुनाई। कवयित्री सम्मेलन का प्रारंभ अलका गुप्ता ने वाणी वंदना से करके अपनी रचना , “बचपन बीता आई जवानी लगा इक्कीसवां साल, बाबुल तेरी चंचल चिड़िया आज चली ससुराल”। सुनाई , रूपा पांडेय ने रचना पढ़ी,” तुलसी कबीर जायसी के जैसे आने वाली पीढ़ी की किताब होनी चाहिए, गर्म आंधियों जो बचाए बहू बेटियों को ऐसा कोई रेशमी हिजाब होना चाहिए । “वरिष्ठ कवयित्री सुश्री लताश्री ने कहा ,” नाच रहा रवि नाच रहा शशि तारा की मंडली नाच रही है। डॉक्टर सरोजिनी सक्सेना ने याद करते ,” यादों के मधुर झरोखों से मैं झांक रही हूं उस पल को।” सुनाया,श्वेता शुक्ला ने कहा,” एक खुश रहे सिर्फ हां में हां मिलाएं खुश रहें, जालिमों की जद से निकलें मौन होकर टालें सौ बलाएं खुश रहें।” डॉ लक्ष्मी रस्तोगी ने सुनाया,” गांव बहुत है सन्नाटा और शहर में कांव कांव बहुत है, गांवों में है फुर्सत ही फुर्सत शहर में भागमभाग बहुत है।” कनक वर्मा ने कहा,” दिल के हर कोने पर नाम अपना लिखाती क्यों हैं, मुझको तन्हाई में यूं छोड़ के जाती क्यों हैं।” आशा श्रीवास्तव ने अपनी रचना पढ़ी,” कुछ एहसास पुराने जमी हुई रजाइयों की तरह, बार-बार नए कंबलों को हटाकर लिखाती क्यों हैं, मुझको तन्हाई में यूं छोड़ के जाती क्यों हैं।” आशा श्रीवास्तव ने अपनी रचना पढ़ी,” कुछ एहसास पुराने जमी हुई रजाइयों की तरह, बार-बार नए कंबलों को हटाकर झांकते हैं।” शकुंतला श्रीवास्तव ने कहा,” अगर हम बन के घन छम छम बरसते, तो तुम धरती पर सिहर सिहर जाते ।”इनके अतिरिक्त प्रीति लाल ने भी अपनी रचना पढ़ी । तत्पश्चात वंदेमातरम की प्रस्तुति आशा श्रीवास्तव ने दी कार्यक्रम में श्री देवी दीन पाल, शज्योति कौल, मनोरमा मिश्रा, पद्मा गिड्वानी, विमल पंत, सरिता अग्रवाल, ज्योति किरन रतन
काव्यांजलि समारोह में शामिल हुए।