मानवाधिकार कोई दूर का सपना नहीं, ये हमारे दैनिक जीवन का आधार हैं : वी. रामसुब्रमण्यन

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मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन ने अपने संदेश में कहा कि 1950 से हर साल 10 दिसंबर को दुनिया इस दिन को मनाने के लिए एकजुट होती है। यह 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाए जाने का प्रतीक है। यूडीएचआर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है जिसने दुनिया भर में मानवता के नैतिक दिशा-निर्देशों को आकार दिया है।

भारत के लिए, यह दिन विशेष महत्व रखता है

उन्होंने कहा कि भारत के लिए, यह दिन विशेष महत्व रखता है। हमारे राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने यूडीएचआर को आकार देने में एक सार्थक भूमिका निभाई है। इसमें सभी के लिए सम्मान, न्याय और समानता के शाश्वत आदर्शों को समाहित किया है। ये वे मूल्य हैं जो हमारी सभ्यतागत लोकाचार और दर्शन में गहराई से निहित हैं।

वर्ष 2025 का विषय

इस वर्ष का विषय, “मानवाधिकार, हमारी दैनिक आवश्यकताएं”, हमें याद दिलाता है कि मानवाधिकार कोई दूर का सपना नहीं हैं। ये हमारे दैनिक जीवन का आधार हैं। यह विषय इस बात की पुष्टि करता है कि मानवाधिकार विलासिता नहीं, बल्कि ऐसी आवश्यकताएं हैं जो आशा और मानवता को बनाए रखती हैं। मानवाधिकार हमें स्वतंत्र रूप से बोलने, सम्मान के साथ जीने और बिना किसी भय के सपने देखने का अवसर देते हैं। लोगों को इन मूल्यों से पुनः जोड़कर, हम जागरूकता, आत्मविश्वास और सामूहिक कार्रवाई को प्रेरित करना चाहते हैं।

वी. रामसुब्रमण्यन ने कहा

रामसुब्रमण्यन ने कल मंगलवार को मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संदेश में आगे कहा कि आज, मानवता जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय क्षरण, संघर्ष और आतंकवाद जैसी अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है, और ये सभी समानता और न्याय के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता की परीक्षा ले रही हैं। इनसे निपटने के लिए सीमाओं और पीढ़ियों के पार एकजुटता की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत इस दृष्टिकोण को मज़बूत करने में निरंतर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विविध सांस्कृतिक परंपराओं के बीच सहानुभूति, करुणा और मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान की भारत की समृद्ध विरासत को आत्मसात करते हुए, आयोग देश के भीतर मानवाधिकारों के लिए अथक प्रयास करता है और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मंचों और वैश्विक दक्षिण में मानवाधिकारों की वकालत को बढ़ावा देता है। पिछले तीन दशकों में अपनी पहुंच, अनुसंधान और क्षमता निर्माण पहलों के माध्यम से, एनएचआरसी सभी लोगों, विशेष रूप से कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर रहा है।”

वी. रामसुब्रमण्यन ने कहा, “इस पवित्र अवसर पर, मैं प्रत्येक व्यक्ति से मानव अधिकारों के लिए खड़े होने का आह्वान करता हूं ताकि एक ऐसी संस्कृति का पोषण हो जो “सर्वे भवन्तु सुखिनः” अर्थात सभी के लिए खुशी की भावना को कायम रखे।”

मानवाधिकार सकारात्मक हैं

सयुंक्त राष्ट्र की वेबसाइट के अनुसार, मानवाधिकार न केवल रक्षा करते हैं, बल्कि दैनिक जीवन में आनंद, खुशी और सुरक्षा भी लाते हैं। मानवाधिकार वास्तविक जीवन का हिस्सा हैं। ये हमारे भोजन में, हमारी सांसों में, हमारे शब्दों में, हमारे द्वारा प्राप्त अवसरों में और हमारी सुरक्षा में निहित हैं।

मानवाधिकार अत्यंत आवश्यक हैं

ये वो मूलभूत चीज़ें हैं जो हम सभी में समान हैं, वो साझा आधार जो हमें नस्ल, लिंग, विश्वास या पृष्ठभूमि के मतभेदों से परे एकजुट करता है। अनिश्चितता से भरी दुनिया में, मानवाधिकार हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बने रहते हैं। जब सब कुछ अस्थिर लगता है, तब सुरक्षा का अधिकार, खुलकर बोलने का अधिकार और हमें प्रभावित करने वाले निर्णयों में भाग लेने का अधिकार हमारे जीवन की आधारशिला बन जाते हैं।

मानवाधिकार प्राप्त करने योग्य हैं

इनकी शुरुआत हमसे होती है, उन छोटे-छोटे, रोज़मर्रा के फ़ैसलों से जो हम दूसरों के साथ सम्मान से पेश आते हैं, अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं, और उन लोगों की बात सुनते हैं जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी कर दी जाती है। रोज़मर्रा के फ़ैसले और आवाज़ें आपके अंदाज़े से कहीं ज़्यादा मायने रखती हैं; ये हमारे आस-पास गरिमा और निष्पक्षता की संस्कृति का निर्माण करती हैं। लेकिन मानवाधिकार सामूहिक कार्रवाई पर भी निर्भर करते हैं, जब समुदाय, आंदोलन और राष्ट्र न्याय और समानता की मांग के लिए एकजुट होते हैं।