ट्रस्ट के पास होगा भविष्य के उत्तराधिकारी चुनने और मान्यता देने का अधिकारः दलाई लामा

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धर्मशाला। तिब्बती आध्यात्मिक धर्मगुरु (Tibetan spiritual leader) दलाई लामा (Dalai Lama) ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी और उनकी मौत के बाद गदेन फोडरंग ट्रस्ट (Ganden Phodrang Trust) के पास भविष्य के उत्तराधिकारी को चुनने और मान्यता देने का एकमात्र अधिकार रहेगा। उन्होंने चीनी दखलंदाजी को खारिज करते हुए दो टूक कहा कि किसी और को इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। बावजूद इसके जैसे-जैसे दलाई लामा (Dalai Lama) 90वें जन्मदिन (6 जुलाई) के करीब पहुंच रहे हैं, वैसे-वैसे तिब्बतियों में इस बात की चिंता घर कर रही है कि अगर दलाई लामा (Dalai Lama) नहीं रहे तो क्या होगा?

दरअसल, इस चिंता की पीछे दलाई लामा (Dalai Lama) का वह विराट व्यक्तित्व है, जिसे उन्होंने दशकों से बनाए रखा है। 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो, जो 1959 में तिब्बत से भाग कर भारत आए थे, ने इन साढ़े छह दशकों में भारत में रहते हुए भी अपने निर्वासन के दौरान तिब्बत को एक राष्ट्र के रूप में बनाए रखा है और पूरी दुनिया में तिब्बतियों का एक समुदाय जीवंत बनाए रखा है। वह चीन द्वारा बदनाम की गई और उस पर जबरन कब्जा किए गए तिब्बत के सर्वोच्च प्रतिनिधि रहे हैं। वह दूर से ही उस मातृभूमि को देख और महसूस कर सकते हैं बावजूद उन्होंने तिब्बतियों के बीच एक गजब की केमिस्ट्री बनाए रखने में अद्भुत सफलता पाई है।

हॉलीवुड से बॉलीवुड तक सम्माननीय हैं दलाई लामा
उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। राजनेताओं, राजघरानों से लेकर हॉलीवुड और वॉलीवुड तक की हस्तियां उनका स्वागत करने को आतुर रहती हैं। इस वजह से भी तिब्बत को वैश्विक समर्थन मिलता रहा है। ऐसे में तिब्बतियों में अब यह हताशा घर करने लगी है कि जब दलाई लामा की मृत्यु होगी तो तिब्बती समुदाय अनिश्चितता के भंवर में डूब जाएगा और शायद सालों तक ऐसी अनिश्चितता कायम रह सकती है।

1950 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण
इसकी वजह चीन है, जिसके सैनिकों ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया था। दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने के विषय पर भी चीन अड़ंगा लगा रहा है। उसका कहना है कि बीजिंग की सहमति के बिना चुने गए किसी भी व्यक्ति को चीन दलाई लामा स्वीकार नहीं करेगा। भारत के धर्मशाला में रहने वाले तिब्बतीऔर दुनिया भर में बिखरा हुआ तिब्बती समुदाय अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर नए चीना हमले से डर रहे हैं।

तिब्बतियों को किस बात का संशय-भय?
दरअसल, दलाई लामा स्वायत्तता के लिए संघर्ष करते रहे हैं और तिब्बत पर चीन के नियंत्रण का विरोध कर तिब्बती प्रवासियों का नेतृत्व कर दुनिया के सबसे पहचाने जाने वाले व्यक्तियों में से एक बन गए हैं। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी का नाम नहीं बताया है, लेकिन उनका कहना है कि वह स्वतंत्र दुनिया में पैदा होगा जो चीन से बाहर होगा। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि जो भी अगला दलाई लामा होगा, वह 14वें दलाई लामा जैसा ही करिश्माई होगा। या फिर चीन का मुकाबला करने के लिए कूटनीतिक और रणनीति तौर पर सक्षम होगा।

चिंता में डूबा धर्मशाला
धर्मशाला में ऐसी चिंताएं सबसे ज्यादा देखने को मिल रही हैं, जहां करीब 20,000 से ज़्यादा तिब्बती समुदाय रहता है और अपने स्कूलों, अस्पतालों और मठों का प्रबंधन खुद करता है। यह समुदाय अपने सांसदों और राष्ट्रपति का चुनाव भी खुद करता है। दलाई लामा ने 2011 में अपनी राजनीतिक शक्तियाँ लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को सौंप दी थीं। हालांकि, चीन इस निर्वासित सरकार को मान्यता नहीं देता और दलाई लामा को एक खतरनाक अलगाववादी मानता रहा है। अब चीन चाहता है कि 14वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद नया दलाई लामा चीन से बने और चीनी सरकार के इशारों पर काम करे।