‘वंदे मातरम’ के साथ हुए राजनीतिक छल के बारे में सभी पीढ़ियों को जानना चाहिए : राजनाथ सिंह

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लोकसभा के शीतकालीन सत्र में सोमवार को ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ भारत के इतिहास और वर्तमान से गहराई से जुड़ा हुआ है।

‘वंदे मातरम’ ने पूरे देश को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित

राजनाथ सिंह ने बताया कि ‘वंदे मातरम’ ने पूरे देश को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। यह केवल बंगाल के स्वदेशी आंदोलन या किसी एक चुनाव तक सीमित नहीं था। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए उस समय ‘वंदे मातरम समिति’ का गठन किया गया था। वर्ष 1906 में जब भारत का पहला राष्ट्रीय झंडा तैयार किया गया, तो उसके मध्य में ‘वंदे मातरम’ लिखा हुआ था। उस समय ‘वंदे मातरम’ नाम से एक अखबार भी प्रकाशित होता था।

‘वंदे मातरम’ के साथ उतना न्याय नहीं हुआ, जितना होना चाहिए

रक्षा मंत्री ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ के साथ उतना न्याय नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था। जहां ‘जन-गण-मन’ राष्ट्रीय भावना में पूरी तरह रच-बस गया, वहीं ‘वंदे मातरम’ को जान-बूझकर पीछे धकेला गया। सदन के अध्यक्ष को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’ के साथ इतिहास ने बड़ा छल किया है और इस अन्याय के बारे में हर भारतीय को जानना चाहिए। उन्होंने कहा कि बार-बार इसे अपूर्ण साबित करने की कोशिश की गई, लेकिन इसके बावजूद ‘वंदे मातरम’ का महत्व कभी कम नहीं हुआ। यह आज भी करोड़ों भारतीयों के हृदय में जीवंत है।

‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम’ भारत माता की दो आंखें

उन्होंने आगे कहा कि ‘वंदे मातरम’ के साथ हुए अन्याय को जानना आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी यह समझ सकें कि इसे कमजोर करने की कोशिशें क्यों की गईं। आज हम ‘वंदे मातरम’ की गरिमा को पुनः स्थापित कर रहे हैं। राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय गीत को समान दर्जा देने की बात भी रखी गई है। उनके अनुसार, ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम’ भारत माता की दो आंखें हैं। ‘वंदे मातरम’ किसी भी तरह से राजनीतिक नहीं है।

‘वंदे मातरम’ के साथ हुए राजनीतिक भेदभाव और अन्याय के बारे में सभी पीढ़ियों को जानना चाहिए

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि ‘वंदे मातरम’ को उपेक्षित और खंडित किया गया। जिस धरती पर इसकी रचना हुई, उसी धरती पर 1937 में कांग्रेस ने इसे खंडित करने का निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’ के साथ हुए राजनीतिक छल और अन्याय के बारे में सभी पीढ़ियों को जानना चाहिए, क्योंकि यह केवल एक गीत के साथ नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत के लोगों के साथ भी अन्याय था।