पारंपरिक पेशा को नई उड़ान: पीएम विश्वकर्मा योजना के ज़रिए सशक्तिकरण की पहल

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अमरावती के गुमनाम गांव खानापुर में प्रतीक प्रकाश राव जमादकर नामक राज मिस्त्री रहते थे जिन्हें, उनके हुनर के लिए शायद ही कोई जानता था। उनके पास अपने कौशल के प्रयोग के लिए बुनियादी औजार भी नहीं थे जिससे समय पर अपना काम पूरा करने में उन्हें खासी दिक्कत होती थी। इससे उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ रहा था। उनके गांव में पीएम विश्वकर्मा योजना लागू होने के साथ ही उनकी जिंदगी बदल गई। उन्हें एक लाख रूपए ऋण मिला उस राशि से उन्होंने नए आधुनिक उपकरण खरीदे जिनसे वे अपने काम समय पर निपटाने लगे। योजना के अंतर्गत मिले प्रशिक्षण से उन्हें नई प्रौद्योगिकी की जानकारी मिली। इस योजना ने उनका आत्म सम्मान भी बढ़ाया क्योंकि उससे उन्हें मात्र पहचान पत्र एवं प्रमाण पत्र से भी कुछ अधिक मूल्यवान नए उपकरणों के साथ ही उनकी अस्मिता एवं पहचान हासिल हुई। प्रतीक जैसे कारीगर एवं हस्तशिल्पी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। वे जिस कौशल एवं पेशे से आजीविका चला रहे हैं। वह उन्हें गुरु-शिष्य परंपरा के समान ही पारंपरिक प्रशिक्षण के तहत हासिल हुए हैं। वे, अपनी विरासत को अपने मान-सम्मान को बरकरार रखते हुए जारी रखना चाहते हैं। यह कारीगर एवं हस्तशिल्पी जिन्हें भारत में अकसर ‘विश्वकर्मा’ कहा जाता है ग्रामीण स्तर पर अपने हाथों एवं उपकरणों के साथ काम कर रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई लेनादेना नहीं है कि दुनिया कितनी आधुनिक होती जा रही है या प्रौद्योगिकी ​कैसे सब तरफ पहुंच रही है क्योंकि उनकी भूमिका एवं महत्व हमेशा ही रहेंगे। वे लोग स्वरोजगाररत हैं मगर अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में गिने जाते हैं। वे लोग बढ़ईगीरी, लुहारी, कुम्हारी, रंग-रोगन, धोबी एवं अन्य पेशों में रोजगाररत हैं।

प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना को इन्हीं कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों का जीवनस्तर इनके कौशल के उन्नयन एवं इनके द्वारा निर्मित वस्तुओं एवं इनकी सेवाओं का दायरा बढ़ाकर सुधारने के लिए ही आरंभ किया गया है। इसका लक्ष्य कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों को उनके पेशों में समग्र सहायता प्रदान करना है। इसका ध्यान ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में व्यवसायों को प्रोत्साहित करने पर है जिसमें महिलाओं के सशक्तिकरण और उपेक्षित एवं वंचित समूहों जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, एनईआर राज्यों-द्वीपों एवं पहाड़ी क्षेत्रों के निवासियों को वरीयता दी जा रही है। 

पीएम विश्वकर्मा योजना 17 सितंबर, 2023 को विश्वकर्मा दिवस के अवसर पर शुरू की गई थी, जिसका वित्तीय परिव्यय वित्त वर्ष 2023-24 से वित्त वर्ष 2027-28 तक ₹13000 करोड़ है। योजना को भारत सरकार के सूक्ष्म-लघु एवं मझोले उद्यमों के मंत्रालय, कौशल एवं उद्यमिता विकास मंत्रालय एवं वित्‍त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग द्वारा सम्मिलित रूप में चलाया जा रहा है। 

इसे हर जिले में पहुंचाने के लिए जिला परियोजना प्रबंध इकाई की नियुक्ति लगभग सभी जिलों में की गई है। इन इकाइयों की भूमिका योजना के लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना तथा विश्वकर्माओं को भी प्रशिक्षण की तिथियों, समूहों, प्रशिक्षण केंद्रों के पते एवं हितधारकों में समन्वय तथा प्रशिक्षण केंद्रों द्वारा प्रशिक्षण संबंधी दिशानिर्देशों का अनुपालन और वे यहां बने रहें यह सुनिश्चित करने के लिए उनकी नियमित निगरानी करना भी शामिल है। योजना के अंतर्गत जिला परियोजना प्रबंध इकाइयों की कुल संख्या जुलाई 2025 तक 497 हो चुकी है। ये देश में 618 जिलों का प्रभार संभाल रही हैं।

मंत्रालयों एवं जिला परियोजना प्रबंध इकाइयों के सहयोग से इस योजना का का ध्यान डिजिटल लेनदेन पर लाभ देने, कारीगरों को विश्वकर्मा के रूप में मान्यता देने, उन्हें कौशल प्रशिक्षण देने, आधुनिक उपकरण एवं जमानत मुक्त कर्ज की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने का लक्ष्य हासिल करने पर है। यह ब्रांड के प्रचार एवं बाजार से जोड़ने, कारीगरों को अपनी उत्पादकता, गुणवत्ता एवं विकास के अवसर बढ़ाने योग्य बनाने पर भी ध्यान दे रहे हैं।  

विश्वकर्मा योजना की पात्रता

पीएम विश्वकर्मा योजना की पात्रता के स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए गए हैं जिससे इसका लाभ लक्ष्यित कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों को मिल सके। योजना का ध्यान पारंपरिक कौशल एवं हाथ से काम वाले पेशों में लगे लोगों की सहायता करना है जो उन्हें पीढ़ियों से विरासत में मिले हैं। 

पीएम विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत पात्रता की शर्तें: 

  • लाभार्थी अपने हाथों एवं औजारों से काम करता हो
  • योजना में उल्लिखित परिवार आधारित 18 पारंपरिक पेशों में से किसी एक में काम करता हो
  • असंगठित क्षेत्र में शामिल हो अथवा स्वरोजगार के आधार पर
  • पंजीकरण तिथि पर न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए
  • अभ्यर्थी द्वारा इससे मिलती जुलती केंद्र/राज्य सरकार की किसी भी ऋण आधारित योजना के अंतर्गत कोई भी ऋण इससे पहले स्वरोजगार/व्यापार विस्तार के लिए पिछले 5 वर्ष में नहीं लिया गया हो     
  • योजना के अंतर्गत लाभ परिवार के सिर्फ एक ही सदस्य तक सीमित रहेगा। योजना के अंतर्गत परिवार को पति, पत्नी एवं अविवाहित संतान के रूप में परिभाषित किया गया है
  • अभ्यर्थी/पारिवारिक सदस्य सरकारी सेवा में पदस्थ नहीं होना चाहिए

योजना के लिए पंजीकरण करने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर के एजेंट कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों का पंजीकरण पोर्टल पर करते हैं। इसके लिए सरकार ने प्रक्रिया निर्धारित की है ताकि प्रत्येक विश्वकर्मा का पंजीकरण बायोमीट्रिक के प्रयोग से आधार पुष्टिकरण द्वारा किया जा सके। 

छोटे कारीगरों के लिए बड़े लाभ 

पीएम विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत छोटे कारीगरों को एक साथ ला कर एवं उनको पहचान देकर सशक्त बनाया जा रहा है। योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता एवं कौशल उन्नयन पर विशेष ध्यान देकर उन्हें वैश्विक बाजार से जोड़ने की पहल की जा रही है। इन पहलों से युगों पुरानी प्रथा प्रतिस्पर्धी दुनिया में पुष्पित-पल्लवित हो पाएंगी और वे अपनी पारंपरिक कला एवं ज्ञान को संरक्षित कर पाएंगे।

पहचान: कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों को पीएम विश्वकर्मा प्रमाणपत्र एवं पहचान/आईडी कार्ड दिए जा रहे हैं। इससे उनके कार्य को मान्यता प्राप्त होने के साथ ही उनके पारंपरिक हुनर को सम्मान भी मिल रहा है।

कौशल उन्नयन: विश्वकर्मा जनों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए तथा उन्हें आधुनिक उपकरणों एवं मशीनों की जानकारी देने के साथ कौशल से परिचित करवाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक कारीगर एवं हस्तशिल्पी को प्रतिदिन 500 रूपए का स्टाइपंड प्राप्त होगा।   

टूलकिट प्रोत्साहन राशि: सरकार द्वारा 15,000 रूपए वित्तीय प्रोत्साहन राशि ई-वाउचर द्वारा प्रदान की जाती है ताकि कारीगर-हस्तशिल्पी अपने हुनर से संबंधित गुणवत्तापरक औजार/उपकरण खरीद सकें। इससे लाभार्थियों को आधुनिक उपकरणों के प्रयोग में सहायता मिलती है जिसके परिणामस्वरूप उनकी उत्पादकता बढ़ने से वे अधिक कमाई कर सकते हैं। टूलकिट प्रोत्साहन राशि के साथ ही टूलकिट संहिता भी जारी की गई हैं ताकि कारीगरों-हस्तशिल्पियों को अपने हस्तकौशल को और सशक्त बनाने के लिए तैयार किए गए आवश्यक औजारों की विस्तृत सूची उपलब्ध हो सके।

ऋण सहायता: योजना के अंतर्गत विश्वकर्मा जनों की सहायता के लिए जमानत मुक्त ‘उद्यम विकास ऋण/एंटरप्राइज डिवलपमेंट लोन’ प्रदान किए जाते हैं। संस्थागत ऋण की राशि से कारीगर-हस्तशिल्पी अपना व्यापार बढ़ाने के साथ ही मनमाना ब्याज वसूलने वाले सूदखोरों के चंगुल से भी मुक्त होते हैं। कारीगरों-हस्तशिल्पियों से रियायती 5 प्रतिशत ब्याज दर लेने की प्रक्रिया तय की गई है जिसमें भारत सरकार ब्याज दर में 8 प्रतिशत तक योगदान कर रही है। इससे ऋण की कुल लागत विश्वकर्मा जनों के अत्यंत अनुकूल हो गई है।

डिजिटल लेनदेन प्रोत्साहन राशि: विश्वकर्मा जनों का डिजिटल भुगतान प्रणाली में भरोसा जगाने के लिए हरेक डिजिटल लेनदेन पर उन्हें एक रूपए प्रोत्साहन राशि दी जाती है। यह प्रोत्साहन राशि उन्हें प्रतिमाह अधिकतम 100 लेनदेन पर ही दी जाती है। इन लेनदेन में विश्वकर्मा जन द्वारा किया गया डिजिटल भुगतान तथा उन्हें अपने खाते में प्राप्त डिजिटल भुगतान, दोनों शामिल हैं। इस पहल से वे देश में हो रहे डिजिटल सुधारों को अपनाने के लिए तैयार हो रहे हैं। इससे यूपीआई/क्यूआर कोड द्वारा उनके ग्राहकों का आधार शहरी उपभेक्ताओं तक फैल रहा है तथा उनकी नकदी पर निर्भरता घट रही है। 

मार्केटिंग में सहायता: विश्वकर्मा जन निम्नलिखित रूप में मार्केटिंग के लिए सहायता भी प्राप्त कर रहे हैं:

  • गुणवत्ता प्रमाणन,
  • मेलों, प्रदर्शनियों एवं व्यापार शो के माध्यम से बाजार से जोड़ना,
  • उनके उत्पादों की ब्रांडिंग एवं उन्हें प्रोत्साहन, विज्ञापन,
  • प्रचार एवं विपणन की अन्य गतिविधियों के साथ उन्हें जीईएम जैसे ई—कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर स्थापित करना।

इससे उन्हें उपभोक्ताओं का और व्यापक आधार प्राप्त करने, अपने ब्रांडों को पहचान दिलाने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही उन्हें सांस्कृतिक पहचान भी हासिल होती है।

उपरोक्त लाभों सहित कारीगरों को उद्यम असिस्ट/सहायता प्लेटफॉर्म पर उद्यमियों के रूप में शामिल होने से भी सहायता मिलती है। उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म ऑनलाइन सिस्टम है जिसे सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय ने अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों के पंजीकरण के लिए तैयार किया है जिसके तहत उन्हें उद्यम पंजीकरण संख्या एवं एवं प्रमाणन प्रदान किया जाता है। 

कौशल को सफलता में बदलना: विश्वकर्मा का प्रभाव 

पीएम विश्वकर्मा योजना सरकार की पूर्एा परिवर्तनकारी पहल बन कर उभरी है जिससे पारंपरिक कारीगरों को सहारा मिलने से उनका सशक्तिकरण हुआ है। योजना आरंभ हुए अभी दो ही हुए हैं मगर यह पांच वर्ष में 30 लाख प्रस्तावित लाभार्थियों का लक्ष्य अभी से प्राप्त करने के पथ पर अग्रसर है। हाल में 31 अगस्त, 2025 को ही पंजीकृत कारीगरों एवं हस्तशिल्पियों की संख्या करीब 30 लाख हो चुकी है। इनमें से 26 लाख लाभार्थियों के कौशल की पुष्टि हो चुकी और उनमें से 86 प्रतिशत विश्वकर्मा जनों ने अपना आरंभिक प्रशिक्षण भी पूरा कर लिया।

कुशल कर्मियों को प्रत्यक्ष आवश्यक उपकरण प्रदान करने एवं आधुनिक प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने के लिए टूलकिट इंसेंटिव के लिए 23 लाख से अधिक ई-वाउचर प्रदान किए जा चुके हैं।  

व्यापार संवर्धन में सहारे के लिए 4.7 लाख से अधिक ऋण मंजूर किए जा चुके जिनमें दोनों किस्त शामिल हैं। ऋणों का कुल मूल्य 41,188 करोड़ रूपए है। 

पीएम विश्वकर्मा योजना द्वारा देश के हरेक कोने में पारंपरिक कारीगरों को व्यापक पैमाने पर सहायता प्रदान की जा रही है। यह योजना कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों से लेकर राजस्थान एवं महाराष्ट्र जैसे पश्चिमी प्रदेशों तक प्रभावी हो रही है। योजना में विभिन्न पेशों के विश्वकर्मा जनों को शामिल किया गया है जिनमें राज मिस्त्री से लेकर दर्जी,माला बनाने वाले, बढ़ई एवं मोची तक शामलि हैं। इन सबमें राज मिस्त्री सबसे अधिक संख्या में पंजीकृत पारंपरिक पेशा सामने आया है। 

इस योजना की सफलता से जुड़े जनता के प्रेरक किस्से: 

अजय प्रकाश विश्वकर्मा, वाराणसी के दरेखू गांव में बढ़ई हैं। वे गांव में ही रहते हुए अपने पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक पारिवारिक पेशे को अपनाए हुए हैं। स्थानीय सूदखोरों द्वारा वसूले जाने वाले 15—20 प्रतिशत ब्याज ने उनके द्वारा आधुनिक औजार खरीद कर अपना धंधा बढ़ाने के लिए देखे गए  सपने की राह रोक रखी थी। तभी उनके जीवन में आई पीएम ​विश्वकर्मा योजना जिसने उन्हें मात्र 5 फीसद ब्याज दर पर कर्ज दिला दिया। उससे अजय ने आधुनिक औजार खरीद कर अपना काम आगे बढ़ाया। उन्हें पहचान पत्र, प्रमाण पत्र तथा 5 दिन का प्रशिक्षण और उसमें भी प्रोत्साहन राशि अलग से मिली।

असम के नगांव में महिला चटाई बुनकर रशीदा खातून अपने पति के साथ-साथ अपने सूक्ष्म व्यापार को चलाने के लिए काम करती हैं। पीएम विश्वकर्मा योजना के माध्यम से उन्हें 7 दिन का प्रशिक्षण और 1 लाख रूपए ऋण की मंजूरी मिली। उसमें से अब तक मिली दो किस्तों की राशि को रशीदा खातून ने अपने व्यापार को आगे ले जाने में निवेश किया है जबकि एक किस्त अभी उन्हें और मिलेगी। फिर भी उनका व्यापार धीरे—धीरे बढ़ने लगा है। योजना से न केवल उनकी आजीविका को मजबूती मिली है बल्कि उनके परिवार को रहने के लिए घर भी मिल गया है जिससे उन सबको सुरक्षा एवं सम्मान प्राप्त हुआ है।

समस्तीपुर, बिहार में नाई का काम सियाराम ठाकुर का पुश्तैनी पेशा है। वे भी अपने पिता की तरह पिछले 30 साल से नाई का ही काम कर रहे हैं। वे साइकिल पर काम करने दूर—दूर तक जाते थे। अलबत्ता पीएम विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत उन्होंने बाल काटने और मालिश करने का आधुनिक सैलून प्रशिक्षण प्राप्त किया जिससे उन्हें अपनी दुकान ही खोल लेने में सहायता मिली। उनकी पत्नी नूतन देवी योजना से पूर्व घर चलाने एवं बच्चों को पढ़ाने—लिखाने में आए दिन पेश होने वाली दिक्कतों को याद करती हैं। अब सियाराम 500 से 1000 रूपए प्रतिदिन कमा लेते हैं जिससे उन्हें स्थायित्व एवं परिवार के लिए बेहतर जीवन स्तर प्राप्त हुआ है।

खुद को सौभाग्यशाली समझते हुए लाभार्थीगणों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने जीवन को बदलने के लिए धन्यवाद दिया है। 

पीएम विश्वकर्मा योजना पारंपरिक कारीगरों को पहचान, कौशल उन्नयन, ऋण और विपणन जैसी सुविधाएं प्रदान कर उन्हें उद्यमी बना रही है। यह योजना 18 पारंपरिक कार्यों में लगे लोगों के जीवन को सशक्त बना रही है, जिससे वे सम्मानपूर्वक अपनी सामाजिक भूमिका निभा सकें।

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